बुधवार, जुलाई 28, 2010

चांदनी चली चार कदम, धुप चली मिलो तक

दिसंबर के अंत में लिखी गयी यह कविता इंटर सीमेंट कल्चरल प्रतियोगिता के लिए लिखी गयी कविता का विषय (शीर्षक ही इसका विषय था ) पूर्व निर्धारित था .......समय सीमा के अन्दर न पढ़ पाने के कारण इसे सेकण्ड स्थान मिला था अनंत संभावनायों वाली बहन अनुपमा के प्रेरणा से आज आपके सामने ..........

चांदनी चली चार कदम, धुप चली मिलो तक
सुख नहीं देता है सुख, दुःख चले सालो तक
जीवन की परिपाटी यही, रेंगती रहती है निशदिन
काँटों और फूलो को देखो, जीवन सहेजता है दिन -दिन
यह जीवन क्या! कैसा जीवन ? जिसमे कांटे फूल न हो
सरक नहीं सकती है सरिता, जिसमे दोनों कूल न हो
सरिता सरकती है पर, तालाब टिका सालो तक ....
चांदनी चली चार कदम, धुप चली.............

चांदनी आती है, मुस्काती है, कुछ ही दिन
यौवन का ज्वार भी, सरकता है कुछ ही दिन
आता है बुढ़ापा, ठहर जाता है सालो तक
नसे शिथिल हो जाती है, पक जाता है बालो तक
क्या कहे ! किस से कहे ! यह रिसता रहता जीने तक
चांदनी चली चार कदम, धुप चली.............

जीवन की यह पगडण्डी, टेढ़ी मेढ़ी चलती है
राही चलता रहता है, बेडी जकड लेती है
अरे कौन सुनता है ? किसको सुनाये दुखड़ा ?
हँसता है कुछ ही दिन ,जीवन भर रोता मुखड़ा
हर्ष हरसाता कुछ ही दिन, बिषाद रहे सालो तक
चांदनी चली चार कदम, धुप चली...........

आती है बहार, बाग-बाग खिल उठते है
पवन की मनुहार पा, फूल मुस्क उठते है
भवर सूंघ गंध को ,गुंजन कर उठता है
तितलियाँ थिरकती है, पराग उमड़ उठता है
बसंत रहता कुछ ही दिन, पतझड़ झड़ता सालो तक
चांदनी चली चार कदम, धुप चली...........

पावस जब जब आता है, नदी नाल उमड़ पड़ते है
काली काली मेघ को देखो, कैसे उमड़ घुमड़ पड़ते है
तट पर के गाँव-गाँव, सिहर उठते है क्षण-क्षण में
कहर कहर मच जाती है, धरती के इस कण- कण में
आस क्षणभंगुर है, साँस चले सालो तक
चांदनी चली चार कदम, धुप चली...........

चांदनी चटकती चुटकी भर, धुप सदा खिलती है
शीतल बयार क्षणिक, उमस सदा रहती है
बाढ़ आती है तो, सब कुछ बहा ले जाती है
पर मंद-मंद धार सदा, प्यास बुझा जाती है
आशा क्षणभंगुर है, निराशा चले सालो तक
चांदनी चली चार कदम, धुप चली...........

आंधी आयगी ही कुछ क्षणों के लिए
आफत लाएगी ही धुल कणों के लिए
चांदनी छिटकेगी, धूप आएगी ही
सृष्टी की ये सतता है, अपना कर्तव्य दिखाएगी ही
सृष्टी का यह क्रम, चलेगा सालो-सालो तक
चांदनी चली चार कदम, धुप चली...........

चंचल चित चहकता है चांदनी के चम-चम में
कोयल की कुहू-कुहू, गूंजती है वन-वन में
वही चित्त चरक जाता है, सूरज की धूप में
बादुर दहल जाता है, जल विहीन कूप में
यही क्रम चालू रहता है, जीवन के धरातल पर
चांदनी चली चार कदम, धुप चली...........

मंगलवार, जुलाई 20, 2010

नक्सलियों की लिमिटेड कम्पनी

जिस जनपक्षधारिता को लेकर नक्सलपंथ का गठन हुआ था आज उससे संघटन के लोग खुद विमुख हो गए है. अब नक्सल गरीबो के हक़ हुकुक के लिए आवाज उठाने वाला संघटन न रहकर एक लिमिटेड कम्पनी बन गयी है जिसका टर्न ओवर कई हज़ार करोड़ रूपये से ज्यादा है..न तो अब जमींदार रहे और न ही दलितों को दास बनाकर उनका शोषण करने वाले भूपति शायद यही वजह है की नक्सली भी अपने कार्यशैली में काफी बदलाव ला चूके है. जुल्म और बदले की भावना उतना बड़ा घटक नहीं रहा इस संघटन से जुड़ने का..बिहार में रोजगार के अभाव में लोग नक्सली संघटन से जुड़ रहे है..नक्सली बतौर वेतन का भुगतान कर रहे है अपने कामरेडों को.और कामरेड भी पैसे, रोजगार और पॉवर के चक्कर में बन्दूक उठाने को तैयार है कल ही जनसत्ता में नक्सली संघटन पर लम्बी रिपोर्ट सुरेन्द्र किशोर जी की पढ़ी. कई मुद्दे और कारण अब अप्रासंगिक लगे. बिहार के औरंगाबाद की स्थिति भी काफी बदल चुकी है मध्य बिहार में अब नक्सलियों का एकमात्र उदेश्य पैसा कमाना रह गया है नीति सिद्दांत जैसी कोई चीज नहीं रह गयी. शोषण का तरीका भी बदल गया है जाती बहुलता वाले क्षेत्र में खुद नक्सली संघटन के लोग वही करते है जो उनके इर्द-गिर्द रहने वाले उन तथाकथित नेतायों को बताते है.नक्सलियों ने खुद एक शोषक वर्ग खड़ा कर दिया है जो सचमुच के "जन " का शोषक ,सामंती बन बैठा है. संघटन से जुड़ना आज फायदे की बात हो गयी है खाटी कमाई का जरिया और घर बैठे रोजगार . आज ही खबर पढ़ी की नक्सल के खिलाफ राज्य साझा अभियान चलाएंगे तब कई बाते इस से जुडी सामने आने लगी लगा आवाज दबाकर और बन्दूक के दम पर इसे रोका नहीं जा सकता है आज नक्सलवाद देश के सबसे बड़ी आंतरिक समस्या के रूप में सामने है. पूरे देश में इससे निबटने की सारी उपायों पर चर्चाएँ चल रही है लेकिन मुद्दा घूम फिर कर जमीनी विवाद तथा इसका सही वितरण न होना माना जा रहा है ..हो सकता है छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भूमि की असमानता इसके पनपने का एक कारण हो लेकिन बिहार जैसे राज्यों में यह अब सही नहीं रह गया ........जब दो दशक पूर्व डी.वन्दोपाध्याय ने नक्सलवाद का मुख्य कारण जमीनों के असमान वितरण को माना था तब बिलकुल सही था आज स्थितिया बदल चुकी है .अभी हाल ही में मै बिहार गया था एक पखवारे की छुट्टी पर .......मै बताता चलु की मेरा घर गया जिले के सुदूरवर्ती प्रखंड इमामगंज में है ....घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र जहा आज भी नक्सलियों की ही सरकार चलती है मै इन क्षेत्रो में एक स्टिंगर के रूप में करीब छः सालो तक काम भी किया हूँ .....और नक्सलियों पर बिशेष रिपोर्टिंग भी. कई जन अदालतों में भी शामिल हुआ ...... इनके खिलाफ रिपोर्टिंग के कारण कई बार हाथ -पावँ काटने की धमकियाँ भी मिली .......मै कई वैसी चीजो का खुलासा किया था जो कही से भी जन सरोकार से जुड़ा हुआ नहीं था ........मैंने नक्सल संघटन से जुड़े कई ऐसे लोगो की सूची प्रकाशित की थी जो संघटन से जुड़ने के बाद लखपति-भूमिपति हो गए, इसमें संघटन के करीब डेढ़ दर्ज़न शीर्ष नेतायों का नाम था .........आज की स्थिति यह है की लोग संघटन से सिर्फ पैसो के लिए जुड़ रहे है .....उपभोक्तावादी दौर में लोगो के महत्वकांक्षा इतनी बढ़ गयी है की आज का युवा सिर्फ पैसा चाहता है और यही पैसे पाने की लालसा का फायदा ये नक्सली उठा रहे है संघटन से जुड़ने वाले लोगो को ४०००/- से लेकर २५०००/- तक बतौर मेहनताना दिया जा रहा है और ताकत ,अहम्, गुरुर तथाकथित सम्मान अलग मिल रहा है सोअलग ......... इनसे जुड़ने का दूसरा कारण खासकर कमजोर वर्गों का बहुत समय से दबाया जाना भी है .....आज भी बदले की भावना से लोग संघटन से जुड़े है ...... तथा जुड़ रहे है.. ग्रामीण अंचलो में नक्सलियों की अदालत बैठती है जिसमे सैकड़ो मुद्दे जो बिशेष्कर जमीनी विवाद से जुड़े होते है निबटाया जाता है ......
बिहार सरकार मान रही है की नक्सली घटनाओ में कमी इसके द्वारा की जा रही उपायों से हो रही है जो कुछ हद तक तो सही हो सकता है पूरी तरह से नहीं.....
हाल ही में मेरी मुलाकात नक्सली गतिविधियों से जुड़े एक नेता से हो रही थी उसने जो सच्चाई बताई वो हैरत अंगेज थी .....अब माओवाद के विचार सिर्फ बात करने की रह गयी है ....अब मूल मुद्दा लेवी बसुलना ,सरकारी योजनाओ का फायदा संघटन से जुड़े लोगो को दिलवाना रह गया है .आज हरेक कस्वे ,गाँव बाज़ार में इन्होने अपना नेटवर्क फैला रखा है सूचना देने के बदले नक्सली इन युवाओं को सरकारी ठीकेदारी, बीडी पता का ठेका ,बस स्टैंड,बाज़ार का ठेका ,जंगली सामानों लकड़ियों की तस्करी, लेवी बसूलने जैसे कामो के जरिये रोजगार दे रखी है .......बताया जाता है की बिहार सरकार के सालाना बज़ट से ज्यादा तो इनका बज़ट है एक अनुमान के मुताबिक आज इनके पास ५००००/-करोड़ से ज्यादा का नगदी प्रवाह है ........यह अब माओवादी कमुनिस्ट पार्टी अब जन सरोकार से सम्बन्ध रखने वाली पार्टी न रहकर लिमेटेड कंपनी बन चुकी है
संघटन से जुड़ने वाला हरेक व्यक्ति व उसका परिवार तब तक संघटन के वेलफेयर का फायदा लेता है जबतक वह संघटन से जुड़ा रहता है ...इस संघटन से जुड़े कई लोगो के बच्चे उच्च स्तरीय अंग्रेजी स्कूलों में पढाई कर रहे है .......उन सारी चीजो का उपभोग कर रहे है जिसे फिजूलखर्ची बोला जाता है ........संघटन के एक बड़े नेता एवं एक शीर्ष नक्सल नेत्री से शादी के दरम्यान वो सब किया गया जो संघटन के नीतियों के विरुद्ध था ....दर्जनों गाड़ियाँ और हजारो को खाना खिलाने की व्यवस्था की गयी थी इसी तरह संघटन से जुड़े एक नेता के गृहप्रवेश पर भी बहुबलिता का सारा परिचय दिया गया था ये सब छोटे छोटे वाकये है जिसे मैंने यहाँ जिक्र किया है जो यह बतलाता है की संघटन एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह काम कर रही है .एक वाकया मुझे आज भी याद है दलित तबके का एक व्यक्ति मेरे घर आया और कहा की सरकार से भूदान में हम ४२ दलित लोगो को ४२ कट्ठा जमीन का परचा दिया गया था जिसपर आज नक्सलियों का खुला संघटन किसान कमिटी का कब्ज़ा है...जिससे जुड़े हुए सभी लोग पुर्व सरकार के समर्थक रहे एक जाती विशेष से है ..और हम भूखो मर रहे है जब मैंने इसे अखबार में छापा तो खाफी हंगामा हुआ और दलितों को जमीन वापस दी गयी .ये सारी बाते यहाँ इसलिए कही जा रही है ताकि सच्चाई सामने आ सके. आज सरकारी कारिंदे खुद मिले है इन लोगो के साथ .....पुलिस खुद समझोता करती है की हमारे क्षेत्र में अपराध नहीं करो हम तुम्हारे आदमियों को नहीं पकड़ेगे .......और इसे ही सरकार नक्सल गतिविधियों का कम होना मानती है . महीने में सात से दस दिन तो नक्सली अपने प्रभाव वाले क्षेत्रो में जब चाहते है पूरा बाज़ार बंदकरवा देते है .....पिछले साल ही केताकी औरंगावाद के पास नक्सलियों ने पूरे एक महीने तक एक बाज़ार को बंद करवा रखा था ............क्या कहेगे इसे आप ........?????
नक्सलियों ने लोगो की पास धन दिया है सम्पनता दी है इच्छाएं पूरी करने को धन दे रही है और आप क्या दे रहे उसे आज़ादी के छः दशक में उसे जीने की आज़ादी तो दे ही नहीं सके .....भूख से मरना आज भी जारी है .......गरीबो की एक बड़ी तादाद आपका मुह चिढ़ा रही है ........अकाल और बाढ़ पर आज इतने सालो बाद भी अंकुश नहीं लगा सके, सुदूरवर्ती क्षेत्रो में चिकित्सा के अभाव में आज भी लोग दम तोड़ रहे है और आप कहते है हम नक्सलवाद का नियंत्रण कर लेंगे .....??? नक्सलियों से मिले पैसे और रोजगार के दम पर खुद ही जीना सिख रहे है लोग आज लिमिटेड कम्पनी की तरह हजारो लोगो के परिवार का भरण पोषण इन नक्सलियों के द्वारा हो रहा है. इनके लिए मसीहा है ये नक्सली ..
क्या सरकार इन लोगो को वो रोजगार मुहैया करवा पायेगी जो नक्सली संघटन कर रहे है ....... ????
सिर्फ खेती पर आश्रित रहने वाले लोगो के पास चार महीने से ज्यादा का काम नहीं संघटन से जुड़ना इनकी मजबूरी है आप इन्हें रोजगार दे सुविधा दे...........परिणाम आपके सामने आ जायेगा. सिर्फ कागज़ पर आंकड़ो के खेल से गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं हो सकता और न ही अर्धसैनिक बलों के दम पर .......

शनिवार, जुलाई 17, 2010

ग़ज़ल

जानकी वल्लभ शास्त्री के गाँव मैगरा (गया ) के शंशांक शेखर जी ने कुछ कवितायेँ भेजी है ब्लॉग पर डालने के लिए ...मूलतः चित्रकार शेखर जी ने कवितायेँ भी खूब अच्छी लिखी है महाराणा प्रताप पर लिखे इनके काव्य संग्रह की प्रशंशा खुद जानकी वल्लभ शास्त्री जी ने भी की है ....ब्रह्मदेव शास्त्री जी के शिष्यत्व में इन्होने कला,कविता, ग़ज़ल ,व्यंग्य सभी में सिर्फ हाथ ही नहीं आजमाया बल्कि खूब लिखा....समय के पावंद ...खरी खरी कहने वाले शेखर जी की ये आदते लोगो की चुभती है जो शायद यही इनकी पूँजी है...........दो गज़ले आपके सामने
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हुए हम आज फिर तनहा ,बता ये दिल कहा जाये .
वो यादो के जो साये है ,वो लिपटे है वो तडपायें
अँधेरी रात किस्मत में
तमन्ना चाँद पाने की
कहानी है यही मेरी
तेरी दुनिया में आने की
बता ये दिल कहा जाये ...............
चले जिस राह पर ये दिल
कहीं मंजिल नहीं आयी
जहा पहुचे है हम आकर
इधर दरिया उधर खायी
बता ये दिल कहा जाये ..............
पता क्या है "शेखर" ने
कहा तक दर्द है पाले
पड़े जख्मो के दागो पर
हजारो आज भी छाले
बता ये दिल कहा जाये .......
वो यादो के जो साये है ,वो लिपटे है वो तडपायें.......!

फकत सदमो की महफ़िल
देखी है जिंदगानी में
किसको सुनाऊ दांस्ता
दुनिया है आनी-जानी में
घर है अँधेरे में ,मजार पर है उजाला
हर सुबह खड़ी लिए मुसीबतों की नयी माला
क्या नहीं पढ़ा हमने
एक छोटी सी कहानी में....
फकत सदमो की ........
कदम लडखडाये ,बड़ी दूर मंजिल
ये बागवान के मालिक, तू भी है बड़ा संगदिल
जिन्दगी भी क्या मिली है
बुलबुले को पानी में........
फकत सदमो की ........
भटकनी है जिन्दगी भी यहाँ ,क्या नहीं देखा तुने ,
आब जुवां भी नहीं खुलती,लोग आँख भी मुने ,
नहीं चैन जीने में
नहीं तेरी फानी में
फकत सदमो की महफ़िल
देखी है जिंदगानी में ...................