सोमवार, मार्च 21, 2011

होली की हास्य व्यंग कविता

होली की हास्य व्यंग कविता
श्री सीमेंट चौराहे पर
भीड़ जुटी मस्तानो की
जब होली का चंग बजा
चौराहे पर हुरदंग मचा
तब शुक्ला जी पिचकारी उठायें
बीच भीड़ में नज़र आयें
जोशी जी पर तान पिचकारी
धीरे -धीरे कमर लचकाएं
बोले जोशी जी तुम भी आओ
संग-संग ठुमका लगाओ
पिए भांग की मस्ती में
दोनों आ गए गश्ती में
जोशी बोले मै नाचूँगा
मुन्नी बुलाओ तो ठुमका लगाऊंगा
ये सुनकर जे.के.जैन आये
मुन्नी बन वो खूब शर्मायें
तब चंग पर थाप लगी
अंग-अंग पर आग लगी
उधर से संजय जी आयें
थोडा झिझके थोडा मुस्काएं
फिर लगा चढ़ने होली की मस्ती
उतर गए जब सारी सुस्ती
बोले भैया होली खेलो
दिल के बंद दरवाजे खोलो
संजय जी की मस्ती देखकर
शर्मा जी भी कूद पड़े
हाथ गुलाल गालो पे मलकर
मुन्नी से वो गले मिले
तब मुन्नी ने काटी चिकोटी
शर्मा जी की खुल गयी लंगोटी
लिए लंगोटी शर्मा जी भागे
बाप-बाप करते वो आगे
बोले मुन्नी बदमाश बहुत थी
टूट गयी जो आश थी उनकी
फिर वापस शुक्ला जी आये
महफ़िल में खूब रंग जमायें
बोले " हवा" कुछ फगुआ गाओ
छोडो भांग कुछ और पिलाओ
कुछ और के चक्कर में
हवा जी फस गए घनचक्कर में
हवा जी की सारी हवा निकाली
भीड़ ने सारी पैग पी डाली
बोले अब मै क्या करूँगा
रात "शमा" से कैसे निबटूंगा
थप्पड़ तक तो सह लेता हूँ
इस बेलन से कैसे निबटूंगा
एक भी ठीक से पड़ गयी तो
तीन दिन मै उठ न सकूँगा
फिर उन्होंने एक राज खोला
क्यूँ रखते वो दाढ़ी वो बोला
खालो कितना मार बीबी से
दाढ़ी में सव छुप जाता है
छुप जाते है दाग थप्पड़ के
चेहरा खिला-खिला लगता है
नहीं विश्वाश पूछो शर्मा से
बाते कितनी ये गहरी है
बोलो जगमोहन इस बात में
सच्चाई कितनी छुपी है ??
तभी लिए रंगों की लाठी
ठुमक-ठुमक राठी जी आये
कोठारी जी के कोने पर
घुडनृत्य की महफ़िल सजाएँ
बोले मै तो नहीं हटूंगा
पावर लेकर यही रहूँगा
तभी चंग टोली निकल पड़ी
साहेब के बंगले चल पड़ी
अब वहां प्रेम -मनुहार होगा
थोड़ी छेड़-छाड़ थोडा फाग होगा
कुछ अच्छा मिलेगा खाने को
पर खाने पर संकट होगा
भीड़ -भाड़ में स्टाल पर
लोगो का खूब जमघट होगा
लोग भेखे पेट टूट पड़ेंगे
हाथो में वर्तन होगा
फिर मजलिश जमेगी मूर्खो की
मूर्खो का नामकरण होगा
रजनीकांत-विनय वाणी से
मूर्खो का नाम नयन होगा
जो एक साल तक सोचेंगे
गाली दे दे कोसेंगे
ऐसा नाम रखा क्यूँ तुने
इसी बात पर रोयेंगे
फिर ढूंढेंगे संपादक को
और बदला चुन-चुन कर लेंगे
पुरे एक साल तक संपादक
गायब रहेगा पन्नो से
पर अगली होली वो फिर आएगा
नया रूप वो दिखलायेगा
अब तुम भी खिसक लो यहाँ से रोशन
बंगले के पीछे दरवाजे से
ढूंढ़ रहे सब डंडा लेकर
शर्मा,शुक्ला जोशी जी
बहुत निपोरी दातें सबने
अब टूटेगी तेरी बतीशी जी ..