बुधवार, फ़रवरी 09, 2011

मोक्ष नगरी गया जी और फल्गु का किनारा

मै जब भी गया जाता हूँ  मेरा प्रयास होता है फल्गु नदी को देखता चलूँ . इसके खोये एहसास को महसूस करता चलु. दूर तक फैले रेत का निहारना सुखद एहसास से भर देता है और खासकर रेत पर मद्धम-मद्धम चलने का सुख... इसे छू कर महसूसना ऐसा मानो अभी-अभी सीता मैया का कोपभाजन बन भगवन राम से श्रापित फल्गु दतचित शांत हो गयी हो..अब यहाँ रेत ही रेत है.. सिकुड़ती फल्गु की किनारे से धारा रुठती हुई दूर और दूर होती जा रही हों...ये धारा का दूर होना सीता मईया के प्रकोप का असर है या धन लोलुप मानव समुदाय का पर फल्गु की उदासी बहुत कुछ बयाँ कर जाती है ...किनारे के हरे भरे सैकड़ो पेड़ काट दिए गए... कारन चाहे जो हो पर लगता है फल्गु में अब उतना जोश नहीं रह गया की कोई सिद्धार्थ वहां आकर "बुद्ध" बन सके ..हिन्दू धर्मस्थल के रूप में ख्यात विष्णु भगवान की पावन नगरी "गयाजी" ने भले ही सिद्धार्थ को गढ़ा हो, ज्ञान दिया हो पर खुद को अबतक नहीं बदल पाया ...यदा कदा शिव और बुद्ध खुद ही म्यान से निकल कर खड़े  हो जाते है आमने सामने .छोड़े इन सब बातों को मुद्दे की बात करे उस अन्तः सलिला फल्गु की बात करे जो वर्षो से इस गयाजी की आन बान शान रही है.....मुझे कई बार विष्णुपद जाना हुआ है लेकिन संयोग कहे या दुर्भाग्य ..जाना हमेशा किसी मृत आत्मा के दाह संस्कार के लिए ही हुआ ..पावन कहे जानी वाली इस फल्गु में इसके परिसर में सचमुच एक अद्भुत शांति, सिर्फ है नहीं मिलती है और सारी भौतिकता ताक पर रखकर व्यक्ति ऐसा महसूस करता है मानो कोई अलग दुनिया से उसका नाता जुड़ गया हो ..दुनियादारी से विरक्त, लोभ लालच से परे, माया मोह से दूर एक ऐसी दुनिया जहाँ भक्ति.विरक्ति, और अदृश्य शक्ति आप को कुछ अलग होने के भाव से भर देती है ....तब मुझे " ऋषि वाल्मीकि की वह कहानी याद आती है आखिर जिस कुटुंब के लिए चोरी करू वो ही मेरे पाप का भागी बनने को तैयार नहीं तो धन किसके लिए कमाया जाए  ???" यहाँ आने पर इस तरह की सारी बाते अचानक ही जेहन को कुरेदने लगती है  मेरे लिए यहाँ आना पोलिग्राफी टेस्ट से गुजरना ही होता है...अपनी गलतियों, कृत्यों और उनसे जुडी सारी नकारात्मकता आसुओं और मौन के जरिये कब स्वतः निकल जाती है मुझे पता ही नहीं चलता. चारो ओरे मची आप-धापी, रोना धोना, दाह-संस्कार  देखकर मन तो जरुर व्यथित होता है पर लोलुपता, यथार्थता का बोध भी यही होता है......कहा जाता है की विभिन्न प्रेत योनियों से मुक्ति देने वाले गयाजी में आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ की फल्गु के श्मशान तट पर, इस माया नगरी में कोई भी दिन बिना शवदाह का गुजरा हो .. यह कोई श्राप है या मुक्ति मोक्ष की लालसा में आत्मा की नश्वरता का कोई पाक सन्देश मै नहीं जनता पर यह जरुर है की कभी बुद्ध को भी आपनी लालसा मिटाने के लिए यहाँ आना पड़ा था...आप भी कभी समय निकलकर जब मन निर्मल करना हो यहाँ आयें ...अद्भुत शांति मिलेगी इस मोक्ष नगरी में........

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