गुरुवार, सितंबर 02, 2010

कुछ अनगढ़ी शब्द चित्र संस्मरण

कुछ भी लिखना अगर इतना आसान होता.... तो पता नहीं कितना कुछ अपने, इर्द -गिर्द फैले वस्तुयों से, संबंधो से, नाता जोड़ लिख लेता और हम सरल ही सही कुछ कह जाते ...मगर ऐसा मेरे साथ नहीं हो पा रहा था. लगा लिखना मेरे से कतई संभव नहीं........(ऐसे आज भी यही सोचता हूँ ...) कविता मेरे लिए वैसी ही थी जैसे उफनती धारों में बिना पतवार दूर समुद्र का सफ़र करना ..या त्वरणहीन उपत्कायों से धरती की परिक्रमा.... पर जब आयाम बनते है बिम्ब खुद ही छंद बन जाते है और क्षितिज से सृजन की लौं रोशन होने लगती है... कवितायेँ कभी ख़तम नहीं होती यह जीवनपर्यंत गायी जाने वाली राग -रागनियाँ है जब भी हम अपने अन्दर प्रकृति के सुरों की मद्धम सी भी ध्वनि महसूस करते है राग की तरंगे अपना रास्ता ढूंढ़ लेते है और हम कुछ अनूठा अद्भुत रच पाते है अनु की अन्दर लेखको की भाषा चेतना सी पता नहीं कितनी राग तरंगे हमेशा बिम्बित होते रहते है......उसी के प्रेरणा से कुछ दिनों पहले उसी के लिए कुछ पंक्तियाँ लिखी थी ........

कहाँ से लाती हो कविता ?
कैसे बुनते हो शब्द!
प्रकृति में फैले इन्द्रधनुषी रंगों की तरह,
कहाँ से आते है ये भाव ?
आसमान में तैरते शब्दों से
कैसे जोड़ लेते हो रिश्ते ??
मै भी तो जानू,
कैसे लिख ली जाती है कविता ?
कुछ "अनुपम" कुछ " नवीन"
जल में फैले तरंगो की तरह
कहाँ से आते है श्रद्धा के ये चंद शब्द
बिम्बों में कहाँ से झांकता है,
सृजन की अकूत संभावनाओं का चाँद
कैसे नापते हो ??
शब्दों की गहराई से उमगते सूर्य को, उसके संताप को
कौन देता है छंदों में जीने की प्रेरणा ??
खाली रिश्तो के इस बियाबान में
कैसे काटते हो भाव की फसल
"श्रधा" की ग़ज़ल
विचारो की पौध
कुछ "सत्य" कुछ "सुशील"

अनु खूब लिखती है और मुझे उसमे अद्भुत, अनंत संभावनाएं दिखती है अभी मै उसका ब्लॉग पढ़ रहा था . मै तो उस ब्लॉग के अनुपम यात्रा के यात्री के रूप में अपना सफ़र शुरू कर दिया है..... क्या आप भी जुड़ना चाहेंगे .......(www.sushilanu.blogspot.com)
सबसे पहले तो बधाई की हम भी एक अद्भुत अनुपम यात्रा के यात्री के रूप में शामिल है ........ शुरुआत शानदार हुई है और हम चाहेंगे की इस अनुपम यात्रा के विभिन्न बिम्बों के हम भी साक्षी बने.... अनु तुम्हारी ये सारी कविताये ऐसी है जैसे बारिश के बूंदों का मद्धिम संगीत या चिड़ियों का मधुरव कलरव ....फूलो की खुशबू को अंतरतम से महसूस करना या झरनों का कलकल स्वर .........तुम्हारी कविताओ में प्रकृति खूब बोलती है ..पंक्तियों का सृजन भाव या तो वेदना होती है या प्रेरणा.... जो जितना ज्यादा भावुक होता है वो उतना ही ज्यादा कुछ व्यक्तय कर पाता है....रोना भी एक सृजन है और यह आत्ममुग्धता की मौनता को तोड़ता है चाहे वह व्यथा हो, उन्माद हो, गुस्सा हो, प्रेम हो, कुंठा हो ...अपना व्यक्त होने का रास्ता बना ही लेता है ...तुम इतना सरल तरीके से जो इतना अद्भुत कुछ कह जाती हो यही तो अनुपम है ..... तुम्हारा इंसान बनाने का यह प्रयास सराहनीय है .........न तो पर्वत को नदी की हत्या करनी चाहिए न हमें अपने संस्कारो की .... जीवन में संस्कारपरक शिक्षा जब से अर्थपरक शिक्षाके रूप में तब्दील हुआ है...नैतिकता समाप्तप्राय हो गयी है... और इसी के आभाव में हम धर्म सहिष्णु भी न रहे ... इंसान बनाने की पाठशाला लक्ष्मी के आश्रय गृह हो गए और सरस्वती के उपासकों की वैचारिक हत्या इन्ही नदी और पर्वत के समान कर दी गए तब हम कैसे हो सकते है इंसान ...........
रही बात एहसास की तो
इन्ही के सहारे तो जीवन चलता है.......
ये हर पल हर वक्त निकलता है
कभी आँखों से तो कभी शब्दों के रूप में .......
यही आँखों की पानी,
है एहसासों की जिंदगानी..

बहन तुम्हारी सारी कवितायेँ पढ़ी, गुनी ... ज्यादा बोलना या लिखना भी अतिश्योक्ति सी लगेगी ..और न बोलना हमारी जड़ता....कोई इसे पढ़कर अपनी जड़ता तोड़ने को वाध्य हो ही जायेगा ...
सचमुच कितनी सही बात लिखी हो इस कविता में "हमारे बीच एक कविता बहती है...." संवेदनायों के धरातल पर कोई भी आ कर रो लेगा ...द्रवित हो जायेगा फिर कैसे संभव है की आँखे नम न हो.....बहुत सुन्दर .... एक कविता बहती तो सब में है पर छंदों में कहा कोई जी पाता है ....छंदों के संभावनाओ को तो कवियों का चन्दन वन कब ही पी चूका है ये हमारे बस की बात नहीं.....कविता की सरिता से एकाकार होना हम तो इसी अनंत अनुपम यात्रा में सीख रहे है...........संभावनाओ का आकाश कही न कही मौजूद जरुर है.... तो हम भी बहा लेगे कविता की सरिता ...............
काफी वर्षो बाद इस से मिलना हुआ फ़ोन पर बाते भी हुई ..... रक्षाबंधन पर उसने कवितायेँ लिखी काफी भावनापूर्ण ..आँखें नम कर देने वाली ..आप भी पढ़े ...........

भावों से परिपूर्ण भाव रूप में ही
एक धागा भेजा है !
जीवन के कई सांझ-सवेरों का
अनुगूंज शब्दों में सहेजा है !!
इन्ही शब्द विम्बों में
अपनी राखी...
पा लेना भैया!
हमारी दूरी
पाट ली जाएगी...
चल पड़ी है जो भावों की नैया!
अविचल चलते राहों पर
कवच है शुभकामनाओं का...
तेरे भीतर विराजता- स्वयं शिव है तेरा खेवैया!
सबकुछ शुद्ध अटल है तो
पहुंचेगा ज़रूर तुम तक...
इतना कहते हुए अब तो आँखों से बह चली है गंगा मैया!
अब विराम देती हूँ अपनी वाणी को
सहेज लेना जो इस अकिंचन ने भेजा है !
जीवन के कई सांझ-सवेरों का
अनुगूंज शब्दों में सहेजा है !!

इस कविता को पढने के बाद आँखे नम न हो यह तो हो ही नहीं सकता था सच कहू तो राखी के साथ शब्दों की ऐसी गरिमा दी गयीं थी की स्वतः ही कुछ बह चला ..प्रत्त्युतर शायद इसी भावनायों की सम्प्रेषनियता का अप्रतिम उत्कर्ष था.........

बहना तुने जो धागा भेजा
वह अगणित भाव लपेटे है
रिश्तो की पतली डोर लगे
पर संबंधों का सार समेटे है.

आँखों से अविरल निकल रही है
भावो की निर्मल गंगा
नयन हमारे अश्रुपूरित है
तू ठहरी देवी, दुर्गा, माँ अंबा.

जटाजूट भी हाथ पसारे
कह रहा इसे बहने दो
अक्षत रोली वन चन्दन है यह
पावन अमृत बहन अनुपमा का

देने को तो बहुत कुछ है
पर सब कुछ तूछ्य तेरे आगे
मेरा सबकुछ तेरा है
भले पतले हो ये धागे

इन पतले स्नेह के धागे में
बंधन है जन्म-जन्मान्तर तक
आज कर्ण खड़ा है हाथ खोले
देने को कल्प मवन्तर तक

यह तुम्हारा ही देन है मै अकिचन भी कुछ लिख पाया
बहुत बहुत शुक्रिया बहन मुझे कविता से जोड़ने के लिए ..
ढेर सारी ज्ञान चाक्षुष खोलने के लिए....

8 टिप्‍पणियां:

  1. what i can say is that i am simply overwhelmed!!!!
    but i also know,that...
    jitni prashansa mil gayi mujhe... uska to bas shatansh hai meri kavita!

    It is ur benign nature that u consider so highly of my meagre capacities...

    aapne sabkuch badi sundarta se saheja hai!
    regards,

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  2. Thanks again for penning this down!
    आज पुनः इन पन्नों से गुजरते हुए आँखें नम हुईं!
    अपनी ही खो रही आस्थाओं के प्रति मन प्रतिबद्ध हुआ... आपके शब्दशीश ने हमेशा ही संबल दिया है...!

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  3. bahut accha likha hai aapney Anupama jee aap aur rakesh jee ki bhawook kavita key dhagey mein jo bhai behan ka pyaar hai woh bahut hi adbhut aur pyara laga. Ankhen nuum ho gayeen. God bless you and your families. Wishing you more and more success and looking forward for wonderful pieces of poetry from you both. Regards Pramod

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  4. bahut accha likha hai aapney Anupama jee aap aur rakesh jee ki bhawook kavita key dhagey mein jo bhai behan ka pyaar hai woh bahut hi adbhut aur pyara laga. Ankhen nuum ho gayeen. God bless you and your families. Wishing you more and more success and looking forward for wonderful pieces of poetry from you both. Regards Pramod Saigal

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  5. राग की तरंगे अपना रास्ता ढूंढ़ लेते है और हम कुछ अनूठा अद्भुत रच पाते है.............

    तुम इतना सरल तरीके से जो इतना अद्भुत कुछ कह जाती हो यही तो अनुपम है ..... तुम्हारा इंसान बनाने का यह प्रयास सराहनीय है

    ...में बार बार लगभग हर कविता में इस का उल्लेख कर दी देता हूँ की जो संस्कार और सकारात्मक सोच से शब्द की धारा प्रवाह निकलती है उसका विवाचन कई बार करना मेरे लिए बहुत ना मुमकिन सा हो जाता है ...शब्द कुछ बोलने ही नहीं देते खुद ही विवेचना कर जातें है ............इतनी शाश्वत बात कह दी उसके आगे मेरे पास शब्द ही नही है बस सिवाए इस के की ढेर सारी -ढेर सारी शुभकामनायें !!!!!!!!!!!!!!!

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  6. I always return to this post to read the beautiful poetry written by you!
    Thanks Bhaiya:)
    Happy Raksha Bandhan!!!

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