बुधवार, जुलाई 29, 2015

हाँ मैं बेटी ही हूँ जो मार दी जाती हूँ......!!!!!


एक रोज सोया ही था
कि..
रुई के फाहों से घर भर गया था मेरा...
सफ़ेद सफ़ेद...
नर्म नर्म...
मुलायम मुलायम...
चारों ओर...
और जागते ही
खो गया था मैं
झक सफ़ेद उन फाहों में...
ये सफ़ेदी
ख्बाब थे कभी यहाँ के...
स्वर्ग था धरती का यह...
लग जाता था बाहर जमघट
इन उजले फाहों के साथ ही
इन बर्फ से हूरों का बूत बनाकर
खूब बातें करते थे....परियों के देश की...
कि कैसे भेष बदलकर लुटेरा परियों को ले जाता था......छीनकर यहाँ से दूर ......!
रख आता था अँधेरे परकोटे पर 'पर' काटकर...
फिर न तो..वह भाग पाती थी और न ही
जी पाती थी
रो रो कर जीना उनकी नियति बन जाती थी...!
हम रोज सोचते थे
कभी उन परियों के बारे में...
तो कभी उस राजकुमार के बारे में...
असीम ताकतों से भरा...
सुन्दर सजीला नौजवान...
हवा से बात करते घोड़ों पर सवार
दक्ष तलवारबाज
जादुई ताकतों से लैश
जो रहबर की तरह आएगा
और बचा ले आएगा उन परियों को
जो दूर कहीं .....
कैद कर रखी गयी है अबाबिलों द्वारा...!!
ये जो सफ़ेद फाहे बरसते है न...??
हर साल आसमान से...
दरअसल यह
उन परियों के आँसू भरे संदेशे होते थे
उस राजकुमार के लिए...
माँ भी यही किया करती थी हर एक साल
बर्फ गिरते हुई घरों के बाहर
जमघट लगा...
बनाने लगती थी
पुतले
परियों और राजकुमार के किस्सों वाले
वैसे ही बूत......!
कि...
इन बुतों से निकलकर
राजकुमार ले आएगा परियों को वापस
उन दानवों से छुड़ाकर
यहाँ
उनके आते ही फिर यह धरा
स्वर्ग बन जाएगी ...!
पर शायद अब ऐसा नहीं हो पायेगा...
एक एक कर
सारी परियों को लीलता जा रहा है यह दानव
अब तो परियाँ जन्म भी नहीं ले पा रही
मार दी जा रही है कोख में ही..!
हर घर में परियों को निगलने वाला एक दानव पहले से ही मौजूद जो है ...!!
एक समय आएगा
कि न तो यहाँ परियाँ होंगी ....!
और न ही...
बूत में छुपी
परियों की कहानियां सुनाने वाली कोई माँ
तब फिर कोई भी तो नहीं होगा यहाँ...?
उन आवाजों को सुनने के लिए
हम भी नहीं....
और न ही हमारी पीढ़ी.....!!!
--राकेश पाठक

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