रविवार, सितंबर 10, 2017

स्त्री केंद्रित दो कविताएँ

                                    1
हमने स्त्री पर सबसे अच्छी कविताएँ मुखोटे पहनकर लिखी...
हमनें सबसे ज्यादा त्रियाचरित्र इन मुखोटों में रहकर रचा...
हमनें सर्वाधिक कविताएँ स्त्रियों के सौंदर्य पर लिख छल रचा...
जब रात अपनी योनि में लोरियाँ इकट्ठा करती थी
तब हमने प्रेम करते हुए प्रेम की कविताएं लिखी..
तब भोर के सिलबट्टे पर कितनी ही देह पीस दी गयी थी..
उसी रात माथे पर पसीने की चुहल, एक कोख में स्खलित हुई थी..
हाथों में फड़फड़ाते तितलियों के कितने पंख तोड़े थे हमनें..
तब भी सृजन की कोख के नाम पर कविता पाठ कर रहे थे हम...
स्त्रीयाँ कविता नही सुनना चाहती..
स्त्रीयाँ कविता लिखना चाहती है...
स्त्रीयाँ मुखोटे पहनना नही चाहती...
स्त्रीयाँ मुखोटे उतारना चाहती है...
पुरुषों के अंदर भी योनि का दाक्षागृह निसृत करना चाहती है स्त्री उसी छल और मुखोटे के साथ श्री...!
     
                            2

पुरुष स्त्री की काया में अंतरण चाहता हूं..
और स्त्री उस कायिक चरित्र से निर्वासन..
इसी अंतरण और निर्वासन के द्वंद में छल दी जाती है स्त्री..
स्त्री अपनी काया को निसोत्सर्ग करती है रोज
राह चलते पुरुषों की नज़रों में..?
राह चलते बटमारों की आंखों से..?
ऑफिस की दीवारों में नज़र टिकाएं भालमानुषों से..?
पुरुष हर भाषा मे स्त्री के साथ छल रचता है..
प्यार भी उसी छल का प्रपंच है..!
रोते हुए भी पुरुष, स्त्री की आंखों में छल से देखता है..
कपट की भाषा
मर्दों की हर ज़ुबान पर वैसे ही मौजूद है
जैसे स्त्री की आंखों में आँसू..
हम पुरुषों ने छल से स्त्रियों के कई नाम दिए..
अपनी तुष्टि के लिए
देवदासी, गणिका, वेश्या...!
बंधन के लिए
माँ, बहन,बेटी..!
दुत्कारने के लिए
कुलटा, रंडी, राड़..!
कितने छली है पुरुष..
ये मांग में भरा गया वह सिंदूर..
जिह्वा पर लिखे गए पुरुष का बीजमंत्र..
सीने पर लटका दिया गया मंगलसूत्र..
सब छद्म है कपट रचने का,
एक पुरुष, एक पति, एक पिता, एक भाई का दिया हुआ वचन भी छल है...
स्त्री हर वक्त छल के इर्द-गिर्द बीथोवेन गाती है..
स्त्री कभी स्वांग नही करती..
स्त्री कभी छल भी नही करती..
पर
ईश्वर ने भी स्त्रियों के चारों ओर छल बुना है श्री..

राकेश

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