शनिवार, अक्तूबर 23, 2010

.टटोलती यादें

कविता मेरे मौन की अभिव्यक्ति है. विचारो की शक्ति है. मेरे अन्दर विचारो के पुतले जन्म लेते रहते है .कुछ अपने भ्रूण अवस्था में ही दम तोड़ इहलीला को प्राप्त हो जाते है तो कुछ शैशवा अवस्था में ही मेरे विचारो से विदा ले लेते है. पुतले के जन्म के इस संघर्षों में कुछ विचार जदोजहद करके मेरे से यदाकदा कुछ लिखवा पाने  के स्रोत्र बन जाते है....और चंद शब्द -सृजन के तब अभिव्यक्ति बन, कविता का रूप धर लेते है, जब विचारों का आत्मसंघर्ष पुतलो के रूप में नृत्य-लीला कर अभिव्यक्ति का नट-भैरव करने लगता है....कविता मेरे इर्द गिर्द फैले जड़ता से भी बुनी जा सकती है तो कभी समाज की विसंगतियां इसके कारक बन, तेवर के कुछ चीजे लिखवा पाने में सफल हो जाते है..
अकेलेपन का साथी होना भी मेरे सृजन की नींव है...कविता कभी रात में मुझे उठाकर झंझोरती हुई कहती है लिखो मुझे ...बुनो रिश्तो का तारतम्य भी सृजन का गवाह बन जाता है यह कविता भी ऐसी ही लिखी गयी थी खुद को टटोलने का एक विखरा
प्रयास .............


हम अक्सर आईने के
सामने खड़े होकर
खुद को टटोलते है, ढूंढते है
देखते है, अपना अतीत
और ऐसे, मानो
कोई खोयी हुई चीजे
पुनः प्राप्त होने को है
हम नित्य कुछ खोते है
और ढूंढते भी
ताकि समय की गर्द में
हम भूल न जाये की
हमें याद क्या करना था ?

नयी चीजे प्रवेश करती है
पुराने को धकियाते हुए
और पुरानी होती हुई
धूल का एक गुबार
इसे अदृश्य सा कर देता है
और हम फिर भूलने लगते है !!!
की अचानक ही
सुनहरी यादों का झोंका
गर्द गुबार को उड़ाते हुए
वक्त को हाथ में कैद कर देता है
और हमें याद हो आता है
जज्बातों को समेटे...
अतल समुद्र में धीरे धीरे
सूर्यास्त के साथ डूब जाना ?????

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद गहन और सोचने को विवश करती कविता……………बहुत सुन्दर्।

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  2. अतल समुद्र में धीरे धीरे
    सूर्यास्त के साथ डूब जाना ?????
    sundar vimb..... aur sochne vicharne ko prerit karte shadchitra!
    anubhuti ko sundar shabd diye hain,bhaiya!
    regards,

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