शनिवार, जुलाई 17, 2010

ग़ज़ल

जानकी वल्लभ शास्त्री के गाँव मैगरा (गया ) के शंशांक शेखर जी ने कुछ कवितायेँ भेजी है ब्लॉग पर डालने के लिए ...मूलतः चित्रकार शेखर जी ने कवितायेँ भी खूब अच्छी लिखी है महाराणा प्रताप पर लिखे इनके काव्य संग्रह की प्रशंशा खुद जानकी वल्लभ शास्त्री जी ने भी की है ....ब्रह्मदेव शास्त्री जी के शिष्यत्व में इन्होने कला,कविता, ग़ज़ल ,व्यंग्य सभी में सिर्फ हाथ ही नहीं आजमाया बल्कि खूब लिखा....समय के पावंद ...खरी खरी कहने वाले शेखर जी की ये आदते लोगो की चुभती है जो शायद यही इनकी पूँजी है...........दो गज़ले आपके सामने
1
हुए हम आज फिर तनहा ,बता ये दिल कहा जाये .
वो यादो के जो साये है ,वो लिपटे है वो तडपायें
अँधेरी रात किस्मत में
तमन्ना चाँद पाने की
कहानी है यही मेरी
तेरी दुनिया में आने की
बता ये दिल कहा जाये ...............
चले जिस राह पर ये दिल
कहीं मंजिल नहीं आयी
जहा पहुचे है हम आकर
इधर दरिया उधर खायी
बता ये दिल कहा जाये ..............
पता क्या है "शेखर" ने
कहा तक दर्द है पाले
पड़े जख्मो के दागो पर
हजारो आज भी छाले
बता ये दिल कहा जाये .......
वो यादो के जो साये है ,वो लिपटे है वो तडपायें.......!

फकत सदमो की महफ़िल
देखी है जिंदगानी में
किसको सुनाऊ दांस्ता
दुनिया है आनी-जानी में
घर है अँधेरे में ,मजार पर है उजाला
हर सुबह खड़ी लिए मुसीबतों की नयी माला
क्या नहीं पढ़ा हमने
एक छोटी सी कहानी में....
फकत सदमो की ........
कदम लडखडाये ,बड़ी दूर मंजिल
ये बागवान के मालिक, तू भी है बड़ा संगदिल
जिन्दगी भी क्या मिली है
बुलबुले को पानी में........
फकत सदमो की ........
भटकनी है जिन्दगी भी यहाँ ,क्या नहीं देखा तुने ,
आब जुवां भी नहीं खुलती,लोग आँख भी मुने ,
नहीं चैन जीने में
नहीं तेरी फानी में
फकत सदमो की महफ़िल
देखी है जिंदगानी में ...................

1 टिप्पणी:

  1. इनके काव्य संग्रह की प्रशंशा जितनी की जाए कम है.
    राकेश जी कभी तो
    कविता की थाली
    पर पधारें.
    और मेरी कमी बखान करें ........

    http://kavikithali.blogspot.com/
    मैं हार गया
    और...
    जित हुई कविता की
    लम्बी लड़ाई के बाद.
    उसके पक्ष में खड़ी थी
    कवियों की पूरी फ़ौज,
    और मैं था अकेला.
    जित तो उसकी होना ही था.
    फिर मैं.....
    समर्पण कर दिया खुद को
    उसके सामने,
    और रंग गया उसकी रंगों में.
    हमारी लड़ाई
    द्वितीय विश्वयुद्ध
    या पानीपत की नहीं,
    हम वैचारिक लड़ाई
    लड़ रहे थे.
    जो एक दो नहीं,
    पुरे सात वर्षों तक चली.
    मैं चाहता था कविता को,
    लय के साथ जीना चाहिए
    पुरे श्रृंगार के साथ रहना चाहिए.
    लेकिन वह....
    आधुनिक लड़कियों के समान,
    बिताना चाहती है
    अर्धनग्न,
    कामुक,
    और फूहड़ जिंदगी.
    लय हीन, चाल है उसकी.
    जब चलती है राहों में
    तो दीखता है,
    उसका हर अंग.
    वह
    किसी से भी
    ले सकती है लिफ्ट
    और
    कभी भी शौरी कहकर
    छोड़ सकती है साथ.

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