रविवार, जनवरी 31, 2010

यादें

एक सदी से अधिक हो गए चेखव को गुजरे हुए पर दिलो में आज भी उनकी रचनाएँ जिन्दा है ....उनके नाटको एवं कहानियों के तिलिस्म का ये आलम रहा है की उनकी कर्मभूमि बादेनवेयलर में भगवान की तरह पूजे जाते है चेखव ...कल चेखव की १५०वी जयंती थी... तो भला मै कैसे भूल सकता था अपने प्रिय लेखक को मै तो इनका जबरदस्त फैन रहा हूँ इनके कहानियों का तिलिस्म ही मेरे प्रेरणा का आधार रहा है.. मै ये हमेशा महसूस करता रहा हूँ की जनवरी महीना उन बड़े -बड़े महासमुद्रो का अवतार महीना रहा है जो मेरे चेतना के बिम्ब रहे है तथा जिन्होंने मुझे जीने का एक मकसद दिया है .ये है मेरे अत्यंत प्रिय नेताजी सुभाषचंद्र बोस ,मेरे आदर्श परमपूज्य स्वामी विवेकानंद जी , प्रिय लेखक डॉक्टर अन्तोव चेखव . और एक व्यक्ति जिनके सच के प्रयोगों ने मेरे अन्दर सेवाभाव का अगणित लघुदीप जलाया है आदरनिये गाँधी जी ..... शायद इसलिए जनवरी का महीना मेरे संकल्पों,विचारो ,आदर्शो के मूल्यांकन का महीना होता है इस पूरे माह मेरे अन्दर ये सारे व्यक्तित्व जीवित हो सामुद्रिक यथार्थचेतना पैदा कर , विचारो का एक बौद्धिक स्वरुप प्रदान करने के सभी साध्य का निमित बनते है
भले ही ये दिव्य पुरुष आज नहीं है लेकिन इनके व्यक्तित्व का ओज ,इनकी प्रखरता ,विचार आज भी प्रासंगिक है ...हाल ही में मैंने चेखव को उनकी पत्नी जो नाटक की पात्र व मशहूर अभिनेत्री ओल्गा किन्प्पेर के रूप में जानी जाती थी, का कुछ पत्र पढ़ रहा था ....ऐसे 433 पत्र चेखव ने अपनी पत्नीको और करीब 400 पत्र उनके पत्नी ने चेखब को लिखा है कमाल के भाव है इनमे , संवेदनशीलता और प्रेम को खूबसूरती के साथ उन्होंने लिखा है.. लाज़बाब है वह!.. आज इन महापुरुषों के स्मृति में एक कविता ...अपने डायरी के उन पुराने पन्नो से जो करीब आज से 7 वर्ष पूर्व लिखी गयी थी

कही दूर...सुदूर
अन्तरिक्ष के अंतरतम से पुकार कर
मानो कह रहे हो ---
अरे ! तुम कहा ढूंढ़ रहे हो मुझे ?
मै यहाँ ही तो हूँ तेरे सामने
इन तारो के बीच में से एक
जो "चेखव" की कथाओं का तिलिस्म है .
उस युग्लिना की तरह जुजुत्सू ,पराभूत
बीच की कड़ी ....
तो भला मै कैसे मरता
ऐसे मरता भी है क्या कोई...?
टिमटिमाते है सभी
इसी अन्तरिक्ष में पिंड बनकर
तो भला मै कैसे दूर हूँ ?? तुमसे
रोज ही तो आता हूँ आँखों के सहारे
ह्रदय के भीतर अंतरतम तक ....
कल रात भी आया था..
चुपके से ...
तेरे सिरहाने बिना आहट..
और बता गया था
आत्मा की नश्वरता और विचारो के अमरता का तत्व
तब तुम सोये ही थे ...
जब सुना गया था गीता का वह श्लोक
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणी नैनं दहति पावकः
न चैनं क्लेदंत्यापो:न शोषयति मारुतः

बुधवार, जनवरी 20, 2010

चित्रकार की कल्पना

गोधरा कांड के बाद आहत हो कई वर्ष पूर्व लिखी गयी यह कविता पुराने डायरी के पन्ने पलते हुए अचानक दिख गयी इस इडियट के डायरी में आज आपके सामने ......
अरे !! ओं रे चित्रकार
तुम क्यों बनाते हो
इन जलते शोलो के चित्र
बारूद और बंदूको के चित्र
दहकते पलाश के
टुह-टुह लाल फूलो के चित्र
जो बिछी है शांत उदात
खामोश !!!!!
मानो गोधरा मौन हो
क्यों चित्रकार ???
आखिर क्यों बनाते हो ??
भय ,भूख ,व्यभिचार का चित्र
विधवा ,वेवश ,अनाथ का चित्र
मज़लूमों का चित्र
पागलो का चित्र
नंगो और उन्मादियों का चित्र
फसादियों का चित्र
दंगाइयों का चित्र ???
नहीं ... नहीं चित्रकार नहीं ????
मुझे नहीं चाहिए
अखबार के पहले पन्ने का चित्र
हत्या ,लूट ,बलात्कार का चित्र
चीखती, रोती माँ का चित्र
नहीं... नहीं ... नहीं ....???
मुझे नहीं चाहिए ये चित्र
जहरीले दातो वाला यह राक्षस
लील लेना चाहता है हम सबको
नहीं ......??????
तुम बनाओं
हंसी और ख़ुशी का चित्र
अमन और मिलन का चित्र
चिड़ियों के मधुर संगीत का चित्र
बादल का गीत
शांति और प्रेम का चित्र
तुम बनोगे न चित्रकार ?????

सोमवार, जनवरी 18, 2010

कुछ बच्चा सा

कोई ख्वाव हूँ मैं सुनहरा सा ,
कुछ अच्छा सा कुछ बच्चा सा
दूर चमकते तारो का, नभ में फैले अरमानो का
अरदास मैं ठहरा कच्चा सा
कुछ छोटा सा कुछ बच्चा सा.........
मिटटी से तेरे संबंधो का, यायावर होते जीवन का
मंदिर में बजते घंटो का, हाथ जोड़े परिंदों का
दुश्मन ठहरा मैं बच्चा सा........
कुछ अच्छा सा, कुछ कच्चा सा
चली चांदनी दो कदम,धुप चली जब मीलों तक
तब तेरी लरजती गीतों का, गायक मैं ठहरा कच्चा सा
कुछ छोटा सा कुछ बच्चा सा.........
गीतों की मधुशाला पा
मदमस्त हुआ ये "बच्चन" सा
हाला पीकर मै तनहा
नाच रहा मै पगला सा
कुछ अदना सा कुछ छोटा सा.........

शनिवार, जनवरी 02, 2010

खुदा तेरे दरवाजे पर

हे राम ,
अल्लाह के बीच ,
वजूद तलाशता
गोयेब्ल्स की सच की तरह कड़वी
जब युग्लिना का बीज ------
उसकी किवताओ मे संकट घोल देती है
गले मे शाह जलील की पाक ताबीज ........
दंगाइयो के बीच ,
उसे मुसलमा बना
उसकी आत्मा को चिंद -चिद कर देती है .........
तब भी वह सपने मे ,
होत्री -उदगात्री बन .
यज्ञ मे कही सिज़दा कर रहा होता है ----------
तब 'काबा' और 'अल्लाह हो'की ध्वनी मे
'पान्च्ज्ञ्न्य' का ॐ गूंजता है ..
और इसी ऊं के बीच कही 'हिडिम्बा' कलमा पढ़ रहा होता है ,
'इबलीस' के लिए ............
क्या अजाजिल त्रिशूल लिए आज भी जिंदा नही ??????????

राकेश पाठक