बुधवार, जनवरी 20, 2010

चित्रकार की कल्पना

गोधरा कांड के बाद आहत हो कई वर्ष पूर्व लिखी गयी यह कविता पुराने डायरी के पन्ने पलते हुए अचानक दिख गयी इस इडियट के डायरी में आज आपके सामने ......
अरे !! ओं रे चित्रकार
तुम क्यों बनाते हो
इन जलते शोलो के चित्र
बारूद और बंदूको के चित्र
दहकते पलाश के
टुह-टुह लाल फूलो के चित्र
जो बिछी है शांत उदात
खामोश !!!!!
मानो गोधरा मौन हो
क्यों चित्रकार ???
आखिर क्यों बनाते हो ??
भय ,भूख ,व्यभिचार का चित्र
विधवा ,वेवश ,अनाथ का चित्र
मज़लूमों का चित्र
पागलो का चित्र
नंगो और उन्मादियों का चित्र
फसादियों का चित्र
दंगाइयों का चित्र ???
नहीं ... नहीं चित्रकार नहीं ????
मुझे नहीं चाहिए
अखबार के पहले पन्ने का चित्र
हत्या ,लूट ,बलात्कार का चित्र
चीखती, रोती माँ का चित्र
नहीं... नहीं ... नहीं ....???
मुझे नहीं चाहिए ये चित्र
जहरीले दातो वाला यह राक्षस
लील लेना चाहता है हम सबको
नहीं ......??????
तुम बनाओं
हंसी और ख़ुशी का चित्र
अमन और मिलन का चित्र
चिड़ियों के मधुर संगीत का चित्र
बादल का गीत
शांति और प्रेम का चित्र
तुम बनोगे न चित्रकार ?????

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