फैले है इन्द्रधनुष सा आँगन में
ये नदियाँ ,पवन ,गगन, सितारे
समेट तू इनके एहसासों को
गीत नया तू गाता चल........
बादल बन अम्बर को छूलो
कभी बरखा बन धरती को चूमो
इस रुखी सुखी,बंजर धरती को
हरियाली का गीत सूनाता चल
गीत नया तू गाता चल .........
ये नदियाँ ,पवन ,गगन, सितारे
समेट तू इनके एहसासों को
गीत नया तू गाता चल........
बादल बन अम्बर को छूलो
कभी बरखा बन धरती को चूमो
इस रुखी सुखी,बंजर धरती को
हरियाली का गीत सूनाता चल
गीत नया तू गाता चल .........
सृजन से कोख हरी हो जाये
ऋतूयों के इस स्वयंबर में
रचे बुने कुछ स्वप्नों का
अविरल अन्दर से बह जाने दे
ख्वाब सुनहरे पूरे हो जाये
गीत ऐसा तू गाता चल ..........
उम्मीदों का पंख फैलाएं
स्वच्छंद थोडा सा उड़ने दो
बुझी-बुझी सी इन पिंडो को
जगमग सूरज सा होने दो
कम्पन हो जाये कण-कण में
गीत अविरल तू गाता चल .........
सात सुरों से बनी रागिनी
बनकर अपनी चाँद पूरंजनी
छेड़ जीवन में वैदिक मंत्रो को
राग भैरवी गाता चल
मंत्र यूही गुनगुनाता चल ..........
तू ठहरी खुशबू का झोका
मै पगला भंवरा ठहरा
तू ठहरी मदमस्त पवन
मै बावला बादल ठहरा
जीवन के इस पतझर को
बूंदों में तू घुल जाने दो
झरनों सा निर्मल निर्झर
गीत नया तू गाता चल ........
मांग रहा खाली दामन में
हे !चाँद थोड़ी शीतल चांदनी दे दे
मिल जाये सांसो को संबल
अमृत गंगा सा पानी दे दे
खिल उठे मन का कोना -कोना
ऐसा गीत नया तू गाता चल
कुछ सरल संगीत सुनाता चल.........
सुन्दर और मोहक निर्झर गीत!
जवाब देंहटाएंनिर्झर की तरह ही बहते सुन्दर भाव , अविरल गीत की धारा!!!!