रविवार, सितंबर 10, 2017

चुप्पी

हमारी हर चुप्पी की कीमत थोड़े से आँसू है..
हमारी हर चुप्पी सवालों के घेरे में हैं..
हमारी हर चुप्पी का मूल्य किसी की कलमें चुकाती है.
हमारी हर चुप्पी की कीमत तय है
कलमों के गिरहबन्द में उसी चुप्पी का रहस्य है..
हमारी हर आवाज पर पहरेदारों के साये है..
आवाजें सींकचों में बंद है..
कलमें हथकड़ियों से बांध दी गयी है
हमारी चीखें वंदे मातरम में गुम हैं
हमारी शोर बहुत कीमती है
हिटलर की हँसी की तरह...
कत्लगाहों के शोर में दबा दी गयी है हमारी चीखें...
अखबारों की कतरनों के बीच दम तोड़ रही है हमारी कलमें...
भयग्रस्त ..हर एक उठाए गए हाथों पर छाले है..
गूंगों के विपक्ष में महाभारत के पात्र है..
दम तोड़ते बच्चे में एकांगी मौत का नृत्य है..
गुनाहों के देवता की गवाह स्याह काले हो गए पूर्व ही..
न्याय की कागजों पर स्याही फेर दी गयी..
और हम चुप रहे उस सभ्यता के ख़िलाफ़ 
जब बोलना था तब भी चुप रहे उस व्यवस्था के खिलाफ...
कल हम चुप हो जाएंगे..
या कर दिए जाएंगे...
अगर हम आज भी इसी तरह चुप रह गए तब...!
हमें भी कतारों में खड़ा होना चाहिए
हमें भी उस इंक़लाब का इस्तकबाल करना चाहिए..
जिसमें विरोध..विरोध..और विरोध हो अपनी हक हकूक की...!!!

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