शनिवार, सितंबर 30, 2017

दशहरे पर दो कविताएँ

                    1                            

थोड़े से लाल फूल बिखेरे
अनामिका से कुमकुम का तर्पण किया..
रक्त चंदन से माथे पर सौंदर्य लिखा..
तब सुर्ख लाल आंखों से झांकता वह दैदीप्य चेहरा
धीमे जलते पीले चिरागों के बीच मुस्कुराता
उस स्त्री के मुख
और
मां के मुख.
की मुस्कानें एक सी ही लग रही थी सखी..!!

                            2

आसमान रावण के अट्टहास से भरा था और बादल सीता के आंसुओं से..
पूरी पृथ्वी सो रही थी और कुंभकरण के खराटे गूंज रहे ..
सूर्य की तरह आंखे लाल किये लक्ष्मण तपतपा रहे थे..
राम मर्यादाओं में बंधे सिसक रहे थे..
बुद्धिमान मानवीय सृष्टि तमाशा देख रही थी
हम अपने हथियार और गदा खोज रहे थे..
पर उधर कम अक्ल जानवरों की एक टीम के सेनानायक हनुमान ..सीता मइया को ढूंढ रहे थे..
नल-नील रास्ते बनाने में लगे थे..
सृष्टि हमेशा कम बुद्धिमान लोगों ने बचायी है.
जानवरों को आगे कर हमने लड़ाइयां जीती है..
यह दशहरा उन तमाम अविकसित लोगों के जुनून की विजय है न कि आर्य और अनार्य , देवता और राक्षसों के बीच की..

उन्हें याद करते हुए दशहरे और विजयादशमी की ढेरों बधाई...💐💐

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