बुधवार, सितंबर 13, 2017

मंत्र चिकित्सा, सेहत और स्वास्थ्य


नए-नए तकनीकों के प्रयोग और अत्याधुनिक वैज्ञानिक साधनों के सुलभता के बावजूद भी आज हर आदमी चाहे वह निजी व्यवसाय में रत हो या नौकरी में या इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा में कैरियर को लेकर चिंतित युवा... हरेक कहीं न कहीं अवसाद व तनाव या प्रतिस्पर्धा की मार से अपनी सृजनिक उर्वरता एवम दैहिक-मानसिक स्वास्थ्यपन दोनों खोते जा रहे हैं। यह प्रतिस्पर्धी समय है युवाओं को हर एक चीजें तुरंत और तत्क्षण चाहिए, वह भी अपनी पूर्ण संपूर्णता के साथ। आधुनिक गैजेट लिए, आत्मविश्वास से लबरेज हम सब कुछ अपनी मुट्ठी में कैद कर लेना चाहते हैं । महत्वकांक्षा का चरमोत्कर्ष लिए जब युवा जी रहा होता है तब या तो ऊंची उड़ान पर मुट्ठी में आसमान लिए होता है या फिर अवसाद, तनाव लिए टूट रहा होता है. ..यही अवसाद और तनाव आज हमारे स्वास्थ्य का सबसे बड़ा शत्रु है और कई गंभीर रोगों का कारण भी..

आज स्थितियाँ इतनी विकट हो गयी है कि हम कोई एक बीमारियों से नही बल्कि बीमारियों के गुच्छ सिंड्रोम से पीड़ित है जिसका समुचित निदान एलोपैथी में भी नही है..आज हम व्यस्त जीवनचर्या, जंक और फ्रोज़न फूड, कार्याधिक्य  तनाव, एकल परिवार कारण अवसाद से ग्रसित लोगों की संख्या निरंतर बढ़ रही है.. 

कहा जाता है कि स्वस्थ मन में ही स्वस्थ शरीर का निवास होता है...हमारे यहां कई पुरानी कहावतें हमारे मन के स्वस्थ रखने से शरीर को स्वस्थ होने से जुड़ा हुआ है। "मन चंगा तो कठौती में गंगा" उसी स्वस्थ मन और स्वस्थ तन को परिभाषित करता है । 

आयुर्वेद के पुरातन ग्रन्थों यथा अष्टांगहृदय  एवम सुश्रुत संहिता में मंत्र और साउंड थेरेपी के द्वारा गंभीर रोगों के ईलाज का कई स्थानों पर जिक्र है.. 

शरीर के अंदर की प्राणवान ऊर्जा "प्राण" "तेजस" व "ओजस" जो शरीर के मूल तत्व वात, पित्त और कफ की प्रकृति को नियंत्रित करते है, को ओजपूर्ण व संतुलित करने के लिए ध्वनि, नाद, मंत्रोपचार, श्रव्य व जाप स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़े ही प्रभावोत्पादक है।

हमारे पुराणों में कहा गया है कि "मनस्येकं बचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनां " शायद इस श्लोक के मूल में स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन माना गया है। इसलिए स्वास्थ्य विज्ञान में यह माना जाता है कि मन और उसके व्यवहार के असंतुलन से ही स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें उतपन्न होती है। हम स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य को मानते हैं जबकि हमारा शारीरिक स्वास्थ्य हमारे मन एवं शरीर दोनों से जुड़ा हुआ है । यदि हम मन से स्वस्थ रहेंगे तभी हमारा शरीर स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट महसूस होगा किंतु मन अगर दुर्बल हुआ तो हम भी अस्वस्थ, दुर्बल एवं रोगी होंगे इस स्थिति में हमारी शारीरिक स्वास्थ्य किसी भी कार्य के लिए उपयोगी नहीं रह जाता।

स्वास्थ मूलतः वह वैज्ञानिक कार्यविधि है जिसमें रत्न, रंग, सुगंध, पादप, आहार, अध्यात्म, योग, ध्यान, मंत्र, शल्य के सर्वसमुच्चय को किसी भी रोगी-मरीज के बीमारियों को ठीक करने के लिए अपनायी जाती है। इन विधियों द्वारा किसी अस्वस्थ व्यक्तियों का इलाज किया जाता है । हर स्वास्थ्य संबंधी कार्यविधियां अपने अलग- अलग स्वरूपों, गुणों, कार्यों से स्वस्थ रखने में अपनी भूमिका निभाते है। आज हम यहां मंत्रोचार एवं ध्वनि के नाद, आवृति, ऊर्जा व तरंग से शरीर को वाइब्रेट कर मन के तीनों गुणोपदेशों को संतुलित करने की कार्यविधि पर चर्चा करेंगे.. 

इस पर विश्व के कई देशों में और विश्वविद्यालयों में निरंतर शोध भी किये जा रहे है जिसका परिणाम भी आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक ही मिले है.. तिब्बत में  सिगिंग बाउल के द्वारा चिकित्सा की प्राचीन विधा आज भी काफी कारगर मानी जाती है..इटली में मोजार्ट म्यूजिक का भी मन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा रहे है..अर्थात यह साउंड हीलिंग तकनीक कहीं न कहीं हमारे मन के तरंगों और मस्तिष्क पर असरकारी है तभी इसका पूरे दुनिया में इस पर शोध किया जा रहा है। 

ध्वनि तरंग, नाद व मंत्रोचार की आवृतिक त्रिगुण्टता उच्चारित स्वर की तीव्रता के साथ हमारे मन-मस्तिष्क व शरीर के अंदर एक वायवीय ऊर्जा प्रवाहित करती है जो शरीर के अंदर के शिराओं, नशों, धमनियों एवं तंतुओं तथा हार्मोन के स्राव वाले ग्रंथियों को उद्दीप्त करती है..इन ध्वनियों से रोगी के अंदर के प्राणवायु हर उच्छवास में एक ऊर्जा का संचरण रोगी के शरीर में कर देता है..यह संचरित ऊर्जा और ध्वनि-नाद के कंपन से क्षतिग्रस्त तंतुओं एवम इनके अंदर के अवरोधों को हटा देती है और रोगी निरंतर अभ्यास से स्वस्थ हो जाता है..यह साउंड थेरेपी मानवीय अंगों के अवरोधों  यथा हृदय रोग, ब्लॉकेज, ब्लड प्रेशर एवम हार्मोन के असंतुलन से उत्पन्न हुए रोगों को भी दूर करने में सक्षम है...

साउंड थेरेपी या मंत्रोपचार विधि कैसे फायदेमंद हो सकता है तथा इसका सही तरीका क्या है..

मंत्रोचार के दो तरीके है। एक वाचिक और दूसरा मानस या अजपा जप.. वाचिक में रोगी को खुद ही ध्वनि तरंगों को बोलते हुए महसूस करना व उसके वैवरेसन को मन के रास्ते शरीर में उतारना होता है। मंत्र श्रवण भी किया जा सकता है परंतु सिद्धासन या सुखासन में शांतचित्तता से ध्यानमग्न हो उस मंत्र के तरंगों को अपने शरीर में फील करना होता है..उपरोक्त दोनों विधि में मन के रास्ते शरीर के अंदर प्राण, तेजस, और ओजस उर्जात्रयी को मज़बूती मिलती है..और वात, पित्त, कफ में संतुलन बनता हैं। एक विशेष स्वर में मंत्रों के उच्चारण से एक कॉस्मिक तरंगे निकलती है जो हमारे शरीर संबंधी कई जटिलताओं को दूर करता है..

1. ओउम (AUM) 

इस मंत्र का अ, उ, और म के संयुक्ताक्षर का उच्चारण एक विशेष नाद में किया जाता है जिसमें उच्चारण की पूरी ऊर्जा का 60% "आS S" (AHH) एवं शेष 40 % "उम" (UM) पर जोर देते हुए श्वास को उच्छवासित करते है। इसका नियमित उच्चारण नाड़ी शोधन या नाड़ी के अवरोधों को दूर करता है। ओजस तत्वीय ऊर्जा को बढ़ाता है व मानसिक शांति देता है। ओउम के साथ शुरू या समाप्त होने वाले शब्द पुरुषोक्त और स्वाहा वाले शब्द स्त्रियोक्त कहलाते है..

2.  राम (RAM)-- इसके उच्चारण में अ शब्द को लंबा खिंचते है। पूरा मुँह खोलते हुए  उच्चारित किया जाए तो यह कंठाग्र पर तरंगित होता है। यह मंत्र शारीरिक ऊर्जा के लिए बड़ा ताकतवर माना गया है। यह वायु दोष को दूर कर उद्दिग्न मन को शांतचित करता है। मानसिक अस्वस्थता को दूर करनेवाला तथा अनिद्रा, बुरे स्वप्न व भय मुक्त करने में भी सहायक है। यह हमारी आंतरिक ओजस ऊर्जा को मजबूत कर रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है..

3. हूंम ( HOOM) 

शिव को समर्पित यह मंत्र अग्नि कोष्ठक तंत्र को प्रदीप्त कर पाचन क्रिया दुरुस्त करता है। अंदर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर तेजस तंत्र को तीव्र करता है..

4. अयंम( AYM)

यह मन की एकाग्रता व बुद्धिमता बढ़ा अवसाद से निकलने में मदद करता है..

5. श्रृंम् (SHRIM)

यह प्लाज्मा एवम शुक्राणुओं की वृद्धि में सहायक होता है तथा व्यक्ति के सृजन पक्ष को उन्नत करता है।

6. ह्रींम (HRIM) 

यह शरीर के अंदर के समस्त हानिकारक टॉक्सिंस को निकालने में मदद कर हैप्पीनेस सीरम को बढ़ाता है।

7. क्रीं (KRI)

इसके तेज-तेज आवाज में उच्चारण से हमारी आंतरिक उर्जा व कार्य करने की क्षमता (स्टेमिना) बढ़ती है।

8. शांम (SHAM)

यह शांति का मंत्र माना गया है इसके उच्चारण से अवसाद, तनाव एवं नाड़ी के समस्त रोगों में अद्भुत रूप से कारगर माना गया है।

9. शूं  (SHUM)--- उच्चारण SHOE की तरह से करते है। उच्चारण में स्वर ध्वनि को थोड़ा छोटा कर उच्चारित किया जाता है। यह हमारी सेक्स संबंधी समस्याओं और नपुंसकता में बेहद कारगर माना गया है।

10.सोम (SHOM)

यह दिमाग, हृदय व नाड़ियों को मजबूत करता है तथा शारीरिक, मानसिक दोषों के निवारण में अत्यधिक क्रियाशील है।

यह कुछ मंत्र है जिसके नियमित उच्चारण से कई जटिल व्याधियाँ यथा नाड़ी, हृदय अवरोध, अवसाद, नपुंसकता,अनिद्रा, बेचैनी आदि में सहायक है...

मंत्र एवं म्यूजिक के द्वारा रोगोपचार पर विश्व के कई अलग-अलग देशों में इस पर रिसर्च किए गए है। ग्लोब इंस्टिट्यूट ऑफ़ साउंड एंड कांशसनेस, सैन फ्रांसिस्को के डायरेक्टर एवं साउंड इंजीनियर गिब्सन लगभग 15 से अधिक वर्षों से मंत्र, ध्वनि एवं म्यूजिक के तरंगों का ब्रेन मैपिंग कर मस्तिष्क पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का अध्ययन किया। अलग-अलग आवृत्ति हर्ट्ज की ध्वनियों से ब्रेन वेव ओस्किलेशन बैंड के तरंगों की गणना की। साउंड हीलिंग के दरम्यान जब इन्होंने अलग-अलग हर्ट्ज की आवृतियों से निकले गामा, बीटा, अल्फा थीटा एवं डेल्टा वेव्स-तरंगों का अनिद्रा, ब्लड प्रेशर,भूख की कमी, डिप्रेशन, पार्किंसन रोग से पीड़ित मरीजों पर प्रयोग किया। इस शोध के दरम्यान इन मरीजों में मस्तिष्क तरंगों एवम बीमारियों में काफी सकारात्मक परिणाम पाया। आशातीत सफलता मिलने से उत्साहित डाक्टर गिब्सन ने इसी साउंड हीलिंग पर सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधार्थी लीजा मेरी पॉटर एवं हीदर टेलर के साथ मंत्र, म्यूजिक व शंख ध्वनि से निकले साउंड वेव्स तरंगों का मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों का पुनः अध्ययन किया जिसका काफी सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाले परिणाम मिले। उन मरीजों का ब्लड प्रेशर सामान्य और अनिद्रा की समस्या से फौरी राहत मिली। वर्ष 1982 में भारत में ही क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, झांसी के सी आर कार्णिक ने कई वर्षों के निरंतर शोधोपरांत "मानव एवं पादप पर मंत्रों का प्रभाव" शीर्षक से एक शोध पत्र लिखा था जिसे नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ, यूनाइटेड स्टेट एंड नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन, यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका ने अपने जनरल में प्रमुखता से प्रकाशित किया। इसमें विभिन्न पादपों पर मंत्रों की आवृत्ति से होने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया था जिसमें सामान्य से इतर मंत्र एवं साउंड हीलिंग के पश्चात उन पादपों का वृद्धि दर सामान्य से 70 से 100 प्रतिशत तक आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा हुआ पाया गया। इस शोध प्रपत्र में पौधों के नाम, अनुपात एवम सामान्य एवम ध्वनि के प्रभावोपरांत वृद्धि दर आकलित किया गया है।  वर्तमान में हरिद्वार स्थित ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान जो अखिल भारतीय गायत्री परिवार का वैदिक कार्य विधियों पर शोध करती है ने भी गायत्री मंत्र एवं संगीत के राग रागनियों का साधकों पर प्रभाव का अध्ययन किया तथा पाया की मंत्रों के निरंतर साधना से व्यक्ति के मन और मस्तिष्क पहले से ज्यादा क्रियाशील और उन्नत हो गए थे। 

शोध एक लंबी प्रक्रिया है और निरन्तर अध्ययन से नए नए परिणाम आते रहेंगे पर अभी तक के शोध परिणामों में इन मंत्र-ध्वनि का असर सकारात्मक ही पाया गया है.. इस साउंड हीलिंग तकनीक बिना मूल्य की चिकित्सकीय विधा है अतः इसे अपनाने में किसी तरह की कोई परेशानी नही है..

 

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